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जैन दर्शन है । जो जंबूद्वीप का एक सौ नव्चे या भाग है। इससे दुनी पर्वत की और उससे दूनी क्षेत्र की । इस प्रकार विदेह क्षेत्र नक दूनी दुनी चौटाई है। फिर प्रागे श्राधी श्राधी है । इस प्रकार भरत रायत की समान चौडाई है।
मरत क्षेत्र की सीमा पर जो हमयत पर्यत है उससे महागंगा और महासिंधु दो नदियां निकलकर भरत क्षेत्र में पढ़ती हुई लवण समुद्र में गिरती हैं जहां वे दोनों नदियां समुद्र में मिलती है वहां लवण समुद्र का पानी श्राकर इस भरत क्षेत्र में भरगया है, जो
आज पांच महासागरों के नाम से पुकारा जाता है । तथा मध्य में अनेक द्वीप से बन गये हैं. जो एशिया अमेरिका प्रादि कहलाते हैं इस प्रकार याजकल जितनी पृथ्वी जानने में आई है. वह सब एसी भरत क्षेत्र में है।
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जिस प्रकार भरत क्षेत्र में दो नदियां हैं जमी प्रकार सातों क्षेत्रों में दो दो नदियां हैं। जो छह पर्वनों में रहने वाले छह सरोवरों से निकलती हैं। पहले और अंत के सरोवर से तीन तीन नदियां निकलती है और शेष सरोवरों से दो दो नदियां निकलती हैं। इस प्रकार सातों क्षेत्रों में चौदह नदियां हैं।
सादयां निकलती है । पहले और अंत में रहने वाले न
प्रकार सातो क्षेत्र र सरोवरों से दो हार से तीन तीन
अपरके कथन से यह बात अच्छी तरह समझ में प्राजाती है कि पृथ्वी इतनी बडी है कि इसमें एक एक सूर्य चन्द्र से काम नहीं चल सकता। केवल जंबूद्वीप में ही दो सूर्य और दो चन्द्रमा हैं। कुछ दिन पहले जापान के किसी विज्ञानवेत्ता ने भी यह बात प्रकट