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जन-दशन
जिस भंगमें जिस धर्म की मुख्यता है उसको छोडकर शेप धर्मों की सत्ता उसी पदार्थ में सिद्ध करने के लिये स्यात. शब्द लगाया जाता है । यह तिगन्त प्रतिरूपक निपात है और इसके अनेक अर्थ होने पर भी इस प्रकरण में अनेकांत की विवक्षा होने से अनेकांत अर्थ ही लिया जाता है। इसलिये स्यादस्त्येव घट: अर्थात् कथंचित् घट है ही ऐसा कहा जाता है । इसका भी स्पष्ट अर्थ यह है कि घट कचित् है' है ही परतु कथंचित् नहीं भी है। नास्तित्व धर्म उसका कहीं गया नहीं है। इसी बातको सिद्ध करने के लिये स्यात् शब्द लगाया जाता है ।
एव शब्द का अर्थ निश्चयात्मक है । इससे यह सिद्ध होता है कि घट में रहने वाला अस्तित्व निश्चयात्मक है अथवा घटमें रहने वाला नास्तित्व वा अवतव्यत्व निश्चयात्मक है। उस पदार्थ में उस धर्म के निश्चयात्मक रहने से फिर कोई किसी प्रकार का संशय नहीं रहता तथा संशय के न रहने से परस्पर विरोध का अभाव हो जाता है।
प्रत्येक पदार्थ में अनन्त धर्म रहते हैं तथा प्रत्येक धर्म का अभिप्राय भिन्न भिन्न होता है । जो धर्म कहा जाता है जिसकी मुख्यता होती है वह अंगी माना जाता है और शेषधर्म जो गौण माने जाते हैं वे सब अंग कहलाते हैं। जिस प्रकार अंगी में सब अंग रहते हैं उसी प्रकार उस मुख्य धर्म में शेप गौणरूप सब धर्म रहते हैं । जिस प्रकर अस्तित्व नास्तित्व धर्म की मुख्यता गौणता वतलाई है उसी प्रकार एक अनेक आदि अन्य अनेक धर्मों को भी