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जैन-दर्शन
२०१] - चथा (स्यादस्त्येव घटः) यह घट कथंचित् अस्तिरूप ही है। (स्यान्नास्त्येव घटः) यह घट कथंचित् नास्ति रूप ही है । ( स्यादस्ति नास्त्येव घटः ) यह घट कथंचित् अस्ति नास्ति रूप ही है। (स्यादवक्तव्य एव घटः ) यह घट कथंचित् अवक्तव्य ही है। (स्यादस्ति चावक्तव्य एव घटः) यह घट कथंचित् अस्तिरूप अवक्तव्य ही है। (स्यान्नास्ति चावक्तव्य एव घटः ) यह घट कथंचित् नास्तिरूप अवक्तव्य ही है । (स्यादस्ति नास्ति चावक्तव्य एव घटः) यह घट कथंचित् अस्तिरूप नास्तिरूप प्रवक्तव्य ही है। इस प्रकार ये सात भंग वा भेद होते हैं।
पहले धर्म में अस्तित्व धर्म की मुख्यता है शेष छह भंगों की गौणता है । शेष छह भंग गौण होते हुए भी उसी पदार्थ में रहते हैं। दूसरे भंग में नास्तित्व धर्म की मुख्यता है शेष धर्मों की गौणता है। तीसरे भंग में अनुक्रम से अस्तित्व और नास्तित्व धर्म की मुख्यता है शेष धर्मों की गौएता है। चौथे भंग में अवक्तव्य धर्म की मुख्यता है, शेष धर्मों की गौणता है। पांचवें भंग में अस्तित्व धर्म की विशेप मुख्यता रखते हुए अवक्तव्य धर्म की मुख्यता है शेष धर्मों की गौणता है। छटे भंग में नास्तित्व धर्म की विशेष मुख्यता रखते हुए श्रवक्तव्यधर्म की मुख्यता है शेप धर्मों की गौणता है। तथा सातवें भंग में तरतम रूप से अस्तित्व नास्तित्व अवक्तव्यत्व धर्म की मुख्यता है, शेषधर्मों की गौणता है।