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..जैन दर्शन
समय णमोकार मंत्र में अनुराग 'रखना और उसके द्वारा पंच परमेष्ठी में भक्ति भावना रखना ही आत्मा का ' कल्याण करने वाला बतलाया है।
इस प्रकार आत्मा आदि समस्त यथार्थ तत्त्वों का श्रद्धान करना अथवा यथार्थ देव शास्त्र गुरु या यथार्थ देव धर्म गुरु का
श्रद्धान करना अथवा पंच परमेष्ठी और तद्वाचक णमोकार मंत्र
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में श्रद्धान या अनुराग रखना सम्यग्दर्शन के लक्षण हैं ।
४- सम्यग्दर्शन के गुण
जिस समय यह सम्यग्दर्शन प्रकट हो जाता है उस समय प्रशम, संवेग, अनुकंपा और आस्तिक्य ये चार गुण - भो उसके ' साथ ही प्रकट हो जाते हैं । प्रशम शब्दका अर्थ शांत परिणामों क 1. होना है । सम्यग्दर्शन प्रकट होने से उस आत्मा के परिणाम अत्यंत : शांत हो जाते हैं। पहले कह चुके हैं कि अनंतानुबंधी क्रोधमान माया लोभ इन चारों तीन कपायों का उपशम होने से ही सम्यग्दर्शन प्रगट होता है । ऐसी अवस्था में जब तीव्र कषायों का उपशम हो जाता है तब परिणामों में भी अत्यन्त शांतता आजाती है। तीव्र - कपायों के न होने से तथा आत्मा का यथार्थ स्वरूप समझने के 'कारण किसी भी दुःख या उपद्रवके आजाने पर वह सम्यग्दृष्टी
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आत्मा उस दुःख या उपद्रवको कर्माका उदयरूप मानता है" और इसीलिये वह शांत रहकर फिर भी आत्मा के यथार्थ स्वरूप का ही चितवन करता है । उस समय वह किसी भी तीव्र कपाय को प्रकट
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