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जैन-दर्शन
अशुभ-जिसके उदय से शरीर के अवयव सुन्दर न हों। सुस्वर-जिसके उदय से स्वर मीठा हो। दुःस्वर-जिसके उदय से स्वर मीठा न हो।
सूक्ष्म-जिसके उदय से शरीर अत्यंत सूक्ष्म हो जो न किसी से रुके न किसीको रोक सके, लोहा पत्थर में से भी निकल जाय।
स्थूल-जिसके उदय से शरीर स्थूल हो, जो दूसरे से रुक जाय वा दूसरे को रोक सके । इसको वादर भी कहते हैं । पर्याप्तक-जिस के उदय से पर्याप्तियों x की पूर्णता प्राप्त हो ।
अपर्याप्ति-जिसके उदय से पर्याप्ति पूर्ण होने के पहले ही मरण हो जाय, पर्याप्ति पूर्ण न हों।
स्थिर-जिसके उदय से धातु उपधातु अपने ठिकाने पर बने रहें, अनेक उपवास करने पर भी विचलित न हों।
४ पर्याप्त छह हैं । अाहार, शरीर, इन्द्रिय, श्वासोच्छ्वास, भाषा और मन । एकेन्द्रिय जीवों के बाहार शरीर इन्द्रिय श्वासोच्छ्वास ये चार पर्याप्तियां होती हैं । दो इन्द्रिय ते इन्द्रिय चौ इन्द्रिय और असेनी पंचेन्द्रिय जीवों के भाषा मिला कर पांच पर्याप्तियां होती हैं । और सैनी पचेन्द्रिय जीवों के छहों. पर्याप्ति होती हैं, जन्म लेने के स्थान पर पहुंचने के अन्तर्मुहूर्त बाद ही सब पर्याप्तियां पूर्ण हो जाती हैं।