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जैन-दर्शन श्रातप-जिसके उदय से शरीर गर्म और.प्रकाश रूप हो। . उद्योत-जिसके उदय से शरीर ठंडा और प्रकाश रूप हो।
विहायोगति-जिसके उदय से यह जीव आकाश में गमन फरे। (पृथ्वी पर चलना भी प्रकाश में गमन करना है, वह दो प्रकार है:- शुभ एवं अशुभ । घोटा हाथी का गमन शुभ है गया अंट का अशुभ है)।
उच्छ्वास-जिसके उदय से जीव श्वासोच्छ्वास लेता है।
प्रत्येक शरीर-जिसके उदय से यह जीव एक ही शरीर का स्वामी होता है।
साधारण-जिसके उदय से एक शरीर के स्वामी अनेक जीव होते हैं।
बस-जिसके उदय से यह जीव दो इन्द्रिय, ते इन्द्रिय, ची इन्द्रिय, पंच इन्द्रिय में जन्म लेता है।
स्थावर-जिसके उदय से यह जीव एकेन्द्रिय में जन्म ले। सुभग-जिसके उदय से अन्य जीव अपने से अनुराग करने
लगे
- दुर्भग-जिसके उदय से अन्य जीव विना कारण ही द्वेष फरने लगे।
शुभ-जिसके उदय से शरीर के अषयव सुन्दर हो।