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________________ [१६६ - -- - - - - जैन-दर्शन श्रातप-जिसके उदय से शरीर गर्म और.प्रकाश रूप हो। . उद्योत-जिसके उदय से शरीर ठंडा और प्रकाश रूप हो। विहायोगति-जिसके उदय से यह जीव आकाश में गमन फरे। (पृथ्वी पर चलना भी प्रकाश में गमन करना है, वह दो प्रकार है:- शुभ एवं अशुभ । घोटा हाथी का गमन शुभ है गया अंट का अशुभ है)। उच्छ्वास-जिसके उदय से जीव श्वासोच्छ्वास लेता है। प्रत्येक शरीर-जिसके उदय से यह जीव एक ही शरीर का स्वामी होता है। साधारण-जिसके उदय से एक शरीर के स्वामी अनेक जीव होते हैं। बस-जिसके उदय से यह जीव दो इन्द्रिय, ते इन्द्रिय, ची इन्द्रिय, पंच इन्द्रिय में जन्म लेता है। स्थावर-जिसके उदय से यह जीव एकेन्द्रिय में जन्म ले। सुभग-जिसके उदय से अन्य जीव अपने से अनुराग करने लगे - दुर्भग-जिसके उदय से अन्य जीव विना कारण ही द्वेष फरने लगे। शुभ-जिसके उदय से शरीर के अषयव सुन्दर हो।
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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