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जैन-दर्शन . नरकगत्यानुपूर्वी-जब कोई मनुष्य वा तिथंच मरकर नरक .. गति में उत्पन्न होने के लिये गमन करता है तब उस आत्मा का
आकार विग्रहगति में मनुष्य वा तिर्यंच के शरीर का सा ही रहता है । यह नरकगत्यानुपूर्वी कर्म के उदय से ही बना रहता है। नरक में पहुंचने पर उस आत्मा का आकार नारकी का हो जाता है।
तिर्यंचगत्यानुपूर्वी-जिसके उदय से तिर्यंच में उत्पन्न होने वाले आत्मा का आकार विग्रहगति में पहले शरीर का आकार बना रहे। . .. ..
मनुष्यगत्यानुपूर्वी-जिसके उदय से मनुष्य गति में उत्पन्न होने वाले आत्मा..का आकार..विग्रहगति में पहले . शरीर का
आकार वना रहे। · देवगत्यानुपूर्वी--जिसके उदय. से देव गति में उत्पन्न होने वाले आत्मा का आकार विग्रहगति में पहले शरीर का आकार बना रहे।
अगुरुलघु-जिसके उदय से यह शरीर न तो नीचे गिरने योग्य भारी हो और न ऊपर. उड जाने योग्य हलका हो। ___उपघात-जिसके उदय से अपने शरीर के अंग. उपांग अपना ही घात करने वाले हों।
परघात-जिसके उदय से शरीर के अंग उपांग दूसरों का घात करने वाले हों।