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जैन-दर्शन
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तिक्त-जिसके उदय से शरीर का रस चरपरा हो।
गंध-जिसके उदय से शरीर में गंध हो। इस के दो भेद है:- सुगंध दुर्गध।
सुगंध-जिसके उदय से शरीर में सुगंध हो । दुर्गध-जिसके उदय से शरीर में दुर्गध हो ।
वर्ण-जिसके उदय से शरीर में वर्ण हो । इस के पांच भेद हैं:- कृष्ण पीत नील रक्त श्वेत।
कृष्ण-जिसके उदय से शरीर का वर्ण काला हो ! पीत-जिसके उदय से शरीर का वर्ण पीला हो। नील-जिसके उदय से शरीर का वर्ण नीला हो। रक्त-जिसके उदय से शरीर का वर्ण लाल हो । श्वेत-जिसके उदय से शरीर का वर्ण श्वेत हो ।
भानुपूर्वी-जिसके उदय से विग्रह के गति में आत्मा का प्राकार पहले शरीर के आकार का बना रहे। इस के चार भेद हैं। .एकगत्यानुपूर्वी, तियेचगत्यानुपूर्वी, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और देवगत्यानुपूर्वी।
* जब यह संसारी अात्मा एक शरीर को छोडकर दूसरा शरीर धारण करने के लिये जाता है तब कोई जीव-तो उसी समय में पहुंच जाता है, किसी को एक समय, किसी को दो समय और किसी को तीन समय लगते हैं। श्रात्मा के इस प्रकार गमन करने को विग्रह गति कहते हैं।