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________________ जैन दर्शन १६३] असंप्राप्तासृपाटक-जिसके उदय से हड्डियों की संधियां नसों से और मांस से जुडी हों उनमें कीलें नहीं होती। स्पर्श-जिसके उदय से शरीर का स्पर्श हो । इसके आठ भेद हैं:हलका, भारी, नरम, कठोर, रूखा, चिकना, ठंडा, गर्म । हलका-जिसके उदय से शरीरका स्पर्श हलका हो । . भारी-जिसके उदय से शरीर का स्पर्श भारी हो । नरम-जिसके उदय से शरीर का स्पर्श नरम हो । . कठोर-जिसके उदय से शरीर का स्पर्श कठोर हो । रूखा-जिसके उदय से शरीर का स्पर्श रूखा हो। . चिकना-जिसके उदय से शरीर का स्पर्श चिकना हो। ठंडा-जिसके उदय से शरीर का स्पर्श ठंडा हो। गर्म-जिसके उदय से शरीर का स्पर्श गर्म हो। .. · रस-जिसके उदय से शरीर में रस हो । इसके पांच भेद हैं। माम्ल, मिष्ट, कटु, कषाय, तिक्त । आम्ल-जिसके उदय से शरीर का रस खट्टा हो।... मिष्ट-जिसके उदय से शरीर का रस मीठा हो। कटु-जिसके उदय से शरीर का रस कड़वा हो। कषाय-जिसके उदय से शरीर का रस कषायला हो ।
SR No.010212
Book TitleJain Darshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalaram Shastri
PublisherMallisagar Digambar Jain Granthmala Nandgaon
Publication Year
Total Pages287
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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