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जन-दर्शन
अस्थिर-जिसके उदय में धातु अधातु अपने ठिकाने पर न रहें. विनित हो जाय।
श्रादेय-जिसक. उदय में शरीर पर प्रभा और फाति रहे। अनादेय-जिसके उदय से शरीर पर प्रभा श्रीर कानि न रहे। यशः कीनि-जिमके उदय में संमार में कोनि पल । अयशः कोनि - जिसके उदय से संसार में अपयश बने। तीर्थफरत्य-जिसके उदय से परहंत पद में भी नीकर द प्राप्त हो।
इस प्रकार नाम कर्म की तिरान प्रतियां हैं और ये अपने अपने उदय के अनुसार काम करती हैं।
गोत्र फर्म-जिसके उदय से ऊँच नीच गोत्र प्राप्त हो। इसके दो भेद है:-उंच गोय, नीच गोत्र।
'च गोत्र-जिसके उदय से लोकमान्य ऊचे कुल में उत्पन्न हो।
नीच गोत्र-जिसके उदय से लोकनिदित नीच कुल में उत्पन्न हो।
धंतराय कम-जिसके उदय से विन 'प्राजांय । इसके पांच भेद हैं:- दानांतराय, लाभांतराय; भोगांतराय, उपभोगांतराय, वीर्या तराय।