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जैन-दर्शन
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एक ऋतु, तीन ऋतुका अयन, दो अयन का वर्प, चौरासी लाख a का एक पूर्वांग और चौरासी लाख पूर्वीगका एक पूर्व होता है । इसके आगे भी संख्यात के कितने ही भेद हैं ।
इस प्रकार पुद्गल धर्म अधर्म आकाश काल ये पांच जीव द्रव्य कहलाते हैं । इनमें जीव को मिला लिया जाय तो छह द्रव्य कहलाते हैं । इन छहों द्रव्यों में काल द्रव्य अणुमात्र है, शेष पांच द्रव्य अनेक प्रदेशी हैं । एक जीवद्रव्य, धर्मद्रव्य, अधर्मद्रव्य में असंख्यात असंख्यात प्रदेश हैं । पुद्गल में एकसे लेकर संख्यात असंख्यात अनंत प्रदेश हैं । आकाशमें अनंत प्रदेश हैं । काल द्रव्य को छोडकर शेप धर्म अधर्म आकाश पुद्गल जीव ये पांच द्रव्य अस्तिकाय कहलाते हैं । काय शब्दका अर्थ शरीर है । जिस प्रकार शरीर में अनेक प्रदेश हैं उसी प्रकार इन पांचों द्रव्यों में अनेक प्रदेश हैं । इसलिये इनको काय कहते हैं । तथा इनका अस्तित्व भी है, इसलिये इनको अस्तिकाय कहते हैं ।
जिस पुद्गल में एक ही प्रदेश होता है उसको अणु वा परमाणु कहते हैं | दो परमाणु वा अनेक परमाणु मिलकर जब एक रूप हो जाते हैं तब उसको स्कंध कहते हैं । इस प्रकार पुल के अणु और स्कंध ऐसे दो भेद हैं ।
द्रव्यों के गुण
अस्तित्व, वस्तुत्व, द्रव्यत्व, प्रमेयत्व, अगुरुलघुत्व प्रदेशवत्त्व, चेतनत्व, अचेतनत्व, मूर्त्तत्व श्रमूर्त्तत्व, ये दश सामान्य गुण -कह