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जैन-दर्शन
स्थान
आकाश द्रव्य - जिसमें जीवादिक समस्त पदार्थों को देने की शक्ति हो उसको प्रकाश कहते हैं । यह आकाश सर्वत्र व्यापक है और अनंत है । समस्त पदार्थों को स्थान देना इसका गुण है । इस आकाश के दो भेद हैं एक लोकाकाश और दूसरा
लोकाकाश | जितने आकाश में जीवादिक समस्त पदार्थ दिखाई पडते हैं वा जितने आकाश में समस्त पदार्थ रहते हैं उतने आकाश को लोकाकाश कहते हैं । यह लोकाकाश श्राकाश के मध्य भाग में है असंख्यात प्रदेशी है तथा अनंतानंत जीव, अनंतानंत पुंगल धर्म
धर्म काल आदि समस्त पदार्थों से भरा हुआ है । इस लोकाकाश के गे सब ओर अनंत आकाश पडा हुआ है वह अलोकाकाश कहलाता है, उसमें कोई पदार्थ नहीं हैं । लोकाकाश का विशेष वर्णन आगे लिखा जायगा ।
काल द्रव्य -काल द्रव्य श्रमूर्त्त द्रव्य हैं और एक ही प्रदेशी है | इसलिये काल के प्रदेश कालागु कहलाते हैं । लोकाकाश के जिसमें प्रदेश हैं उन सबपर एक एक कालागु ठहरा हुआ है। लोका कारा के असंख्यात - प्रदेश हैं इसलिये कालाणु भा असंख्यात हैं । प्रत्येक कालागुकी पर्याय समय कहलाता है । यह कालका सबसे छोटा भाग है । असंख्यात समयकी एक श्रावली, असंख्यात श्रावलीका एक उच्छ्वास, असंख्यात श्रावली का एक निश्वास, श्वासोच्छ्वास दोनोंका एक प्राण, सात प्राणों का स्तोक, सात स्तोक का एक लब, सतत्तर लवों का एक मुहूर्त्त, तीस मुहूर्त्तका एक रात दिन पंद्रह रातदिनका एक पक्ष, दो पक्षका महीना, दो महीने की