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जन-दर्शन
को हा पर इतना भ
या कर देता है । धक नहीं।
आवश्य
धारण करने वाला श्रावक त्रस जीवों की हिंसा का सर्वथा त्यागी होता है और स्थावर जीवों की हिंसा का त्याग यथासाध्य करता है। गृहस्थ श्रावकको पृथ्वी भी खोदनी पडती है, जल भी काम में लेना पडता है, अग्नि भी काम में लेनी पड़ती है, वायु से भी का. लेता है और वनस्पति भी काम में लाता है। इसलिये इन जीवों की हिंसा का त्यग उससे हो नहीं सकता। तथापि अपनी आवश्यकतानुसार ही इनको काम में लाता है, अधिक नहीं। त्रस जीवों की हिंसाका त्याग वह सर्वथा कर देता है।
यहां पर इतना और समझलेना चाहिये कि हिंसा चार प्रकार को है। संकल्पी, प्रारंभी, उद्योगी और विरोधी हिंसा : ' मैं इस जीवको मारूंगा" इस प्रकार संकल्प पूर्वक जो हिंसा की जाती है उसको संकल्पी हिंसा कहते हैं । इस प्रकार संकल्प पूर्वक हिंसा करना सबसे बड़ा पाप है, क्योंकि वह जान बूझकर हृदय से की जाती है । श्रावक लोग इस संकल्पी हिंसा का त्याग मने वचन काय और कृत कारित अनुमोदना से करते हैं। श्रावक लोग ऐसी संकल्पी हिंसा मन से बचन से और काय से न करते हैं न कराते हैं और न उसकी अनुमोदना करते हैं । त्रस जीवों की संकल्पी हिंसा का त्याग श्रावक लोग सर्वथा कर देते हैं यही उनका अहिंसाणुव्रत है।
श्रावक लोग जो चक्की उखली चूल्हा बुहारी पानी रसोई'आदि __ में हिंसा करते हैं वह प्रारंभी हिंसां कहलाती है। व्यापार आदि में .
जो हिंसा होती है वह उद्योगी हिंसा कहलाती है और किसी के .