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जैन-दर्शन
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अणुव्रत
जिस प्रकार मुनियों के पांच महावत बतलाये हैं उसी प्रकार श्रावकों के पांच अणुव्रत हैं। अहिंसा-अणुव्रत, सत्य-अणुव्रत, श्रचौर्याणुनत, ब्रह्मचर्याणुव्रत और परिग्रह परिमाणाणुव्रत, ये पांच उन अणुव्रतों के नाम हैं। मुनियों के व्रतों में और श्रावकों के व्रतों में इतना ही अन्तर है कि मुनियों के व्रत पूर्ण रूप से होते हैं। मुनिराम मन वचन काय और कृत कारित अनुमोदना से समस्त पापोंका त्याग कर देते हैं । तथा श्रावक लोग त्रम जीवों की हिंसा का त्याग करते हैं और स्थावर जीवों की हिंसा का त्याग यथा साध्य यथाशक्ति करते हैं। इसके सिवाय मन वचन काय और कृत कारित अनुमोदना के द्वारा त्याग करने में किसी किसी को छोड देते हैं। कोई पाप अनुमोदना से त्याग नहीं किया जाता
और कोई पाप मनसे भी त्याग नहीं किया जाता । इस प्रकार श्रावकों का त्याग विकल्प रूप से होता है।
अहिंसा-अणुव्रत-हिंसा का एक देश त्याग करदेना अहिंसागुव्रत है। इसका अभिप्राय यह है कि संसारी प्राणी दो प्रकार के होते हैं। एक त्रस, दूसरे स्थावर । दोइन्द्रिय तेइन्द्रिय चौइन्द्रिय पंचेइन्द्रिय जीवों को बस कहते हैं। ये सब जीव प्रायः चलते फिरते दिखाई पड़ते हैं। तथा एकेन्द्रिय जीवों को स्थावर कहते हैं। पृथ्वी कायिक, जलकायिक, अग्नि कायिक, वायुकायिक और वनस्पति कायिक ये सब स्थावर कहलाते हैं । इनमें से अहिंसाणुव्रत को