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बस अस्थियां अवशेष हैं तनमें न किञ्चित् रक्त है, हा! जल रही जठराग्नि अन्दर पेट उनका रिक्त है। आंखें सहज अन्दर धंसी चहरा हुआ कङ्काल है, दुर्भिक्ष पीड़ित-मानवोंका वृत्त अतिविकराल है।
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भाई। तुम्हारा हो भला चिरकालतक सुखसे जियो,
तुम नीरके बदले सदा ही क्षीर या अमृत पियो। सुख हो यहां दिन रात दूना, आपकी सन्तानको, उच्छिष्टही दे दान कुछ राखो हमारे प्राणको ।
सब कुछ तुम्हें प्रभुने दिया हमको मिली है दीनता, करुणा करो। करुणा करो। अवलोकके यह हीनता । अब न ठुकराओ पदोंसे हम तुम्हारे दास हैं, सब जानते हैं आप की आवास नहिं अतित्रास हैं।
पीड़ित पड़े हैं दीन सड़कों पर कहीं रोते हुए, __ हा ! राजसेवक मारते मनमें मुदित होते हुए। किसको सुनायें वे व्यथा उनका यहां कोई नहीं, दुर्भिक्ष पीड़ित मानवोंसे भर गई भारत-मही।