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जो देखता था दृश्यको देता वही धिकार था। हा! नर पिशाचों से हमारे ग्रन्थ नष्ट किये गये,
यो शास्त्र जलवा कर यहां आहार बनवाये गये। छह मास तक उनकी यहां होली मुदित होती रही,
पर पापियों के भारसे पृथिवी व्यथित होती रही। पाया जहांपर ग्रन्थ जो वह अग्निमें डाला गया.
अथवा नदीकी धारमें ही द्वष बश डाला गया । हा! हो चके कितने हमारे ग्रन्थ जगतीसे विदा, उनको गिनाने में यहां असमर्थ हैं हम सर्वदा ।
अवशेष । जिस समय दुखसे हमें जीवन यहां निज भार था,
बलहीन थे इससे हमें सब कह रहा संसार था। निर्मल मुखों पर लग चुकी थी पूर्णतः तब कालिमा, वह सूर्य अस्ताचल गया तो भी प्रगट थी लालिमा ।
सेठ। सम्पत्ति रहती है जहांपर शील टिकता ही नहीं,
यह बात प्रायः सर्वदा मुखसे कहा करती मही । लेकिन शुदर्शन सेठने इस बातको मिथ्या किया, धनशील दोनों रह सके यह विश्वको वतला दिया।