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जव क्रूरताका दृश्य वह आता हगोंके सामने । कहना हमें पड़ता यही तब वे मनुष्य अवश्य थे, पर पामरोंके राक्षसोंसे भी बड़े दुष्कृत्य थे।
अत्याचार। की अन्य लोगों ने हमारे धर्म प्रति अति धृष्टता.
लेकिन विदा नहिं हो सकी जिन धर्मकी उत्कृष्टता अन्याय अधमों ने किये यों ओट ले परमार्थकी,
हा! राक्षसोचित कार्यद्वारा पूर्तिकी निज स्वार्थकी तुड़वा हमारे देव-मन्दिर रम्य निज मन्दिर किये,
वोले कहीं मुखसे बचन तो शूलिपर ही धर दिये। यदि जान पावें जैन हैं तो मौत सिरपर ही खड़ी,
कैसे रहेगा धर्म भूमें थी हमें चिन्ता बड़ी ? उस काल अत्याचारियों से गुप्त ही रहना पड़ा,
अपमान प्यारे धर्मका हमको दुःखित सहना पड़ा। प्रभु-पूज्य प्रतिमायें हमारे सामने तोड़ी गई,
अथवा अतल गम्भीर जलमें नित्यको छोड़ी गई। अव भी अनेकों ठौरहा! हा! देख भग्नावशेषको,
उन पामरों के कृत्यसे मन प्राप्त होता क्लेशको। होता रहा कितना यहांपर नित्य अत्याचार था,