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अध्ययन। बैठे हुये हैं शान्त निर्जन प्रान्तमें गुरुवर कहीं,
करने लगे विद्याध्यन आ छान्न बाहिरसे वहीं । जिनकी मनोहर उच्च ध्वनिसे गंजता था बन अहो, करके श्रवण उस नादको किसका हृदय हर्षित न हो?
गुरुदेव। गुरुदेव वे निःशुक्ल ही विद्या पढ़ाते थे हमें, कल्याण-पथ-पर प्रेमले वे ही चलाते थे हमें। सम्पूर्ण शास्त्रोंका उन्हें था ज्ञान,नहिं अभिमान था, संसार उनको सब कलाका मानता विद्वान था।
विद्यार्थी। विनयी सदाचारी यहांके पूर्णतः सब छात्र थे,
वे दुर्व्यसनसे दूर थे सब भांति विद्या पान थे। पढ़ते रहे सानन्द निर्भय श्रावकों के दानसे, करते रहे उद्योत वश भर तत्त्वका निज ज्ञानसे।
मध्याह्न। मध्याहमें सबने मुदित हो नित्य सामायिक किया, असमक्ष तबही भक्तिसे भगवानका चन्दन किया।