________________
देवांगनाओंपर कभी भी वे नहीं मोहित हुये, अपने नियमसे लोकमें सर्वत्र ही शोभित हुये।
व्यापार । है बास लक्ष्मीका सदा हे पाठको ! व्यापारमें, चरितार्थ करते थे कभी यह बात हम संसारमें। द्वीपान्तरों में जा सदा सम्पत्ति ही लाये यहां,
करते हुये व्यापार उत्तम हम न शरमाये यहां। व्यापारके कारण हमारा देश सचमुच स्वर्ग था,
अमरेन्द्रसा ही सौख्य अनुपम भोगता नर वर्ग था हस्त गत करने इसे सब लोग ललनाते रहे, पर भाग्य बिन इसको कभी भी वे नहीं पाते रहे।
प्रात:काल। प्रत्यूषश्में हमको जगानेके लिये घण्टी बजी.
इच्छामि ही कहते हुये हमने सुखद निद्रा तजी। झर हाथ मुख धोकर पुनः भगवानकी की बन्दना, होने लगी आनन्द ध्वनिसे मोद दात्री प्रार्थना ।
१ गुजरातमे जगनाइ नामका एक बडा भारी जैन सेट हो गया है। इनका फारस और अरबस्तानसे व्यापारिक सम्बन्ध था।
२यद विद्यार्थी अवस्थाका वर्णन है।