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वे हो गये फिर लीन अपने नित्यकेही कार्यमें, आलस्य था उनके न सन्निधि ध्यान था शुभकार्यमें।
संध्या समय। संध्या समय सब छात्रगण मिल घूमने जाने लगे,
सवही परस्पर प्रेमसे निजकार्य बतलाने लगे। छाया तिमिर संसारमें जव ओटमें रवि हो गये, धार्मिक कथा करते हुये तब छात्र सारे सो गये।
जिनालय। सचमुच हमारे देव-मन्दिर शान्तिके आगार हैं,
सविनय प्रभूको पूजते नित भक्त थारम्बार हैं। उत्पन्न होती है हमें उस देवगृहमें भावना
हां, करन सकता सौख्य कोई भक्ति रसका सामना कोई कहीं पढ़ते रहे पूजा मनुज मृदु-गानसे, कोई कहीं सुनते रहे जिन-शास्त्रको अति ध्यानसे। योगीन्द्र तट धैठे हुये हैं पूछते श्रावक कहीं, मृदु शान्ति प्रसरित होरही उस काल चारों ओरही
देव-प्रतिमा। जैमी हमारी देव-प्रतिमायें मनोहर है यहां, अन्यत्र बसी रम्यप्रतिमायें भला रकग्नी कहाँ ?