________________
FOct
देखा करें प्रतिमा नयन अविराम ही भगवानकी, चिन्ता हृदयमें हो कभी तो वह स्वपर उत्थानकी ।
सुनकर कठिन अपशब्द दुर्जनके न मनमें क्षोभहो, निज धर्म रक्षाके लिये नहिं देह तकका लोभ हो । निर्मल हृदय हो शशि सदृश सादा हमारा वेश हो, अतिशीघ्र ही धन धान्यसे परिपूर्ण प्यारा देश हो।
उत्तेजन। होने लगा है रम्य प्रातःकाल निद्राको तजो,
दुर्गुण जगतके छोड़के अनुपम गुणोंसे अब सजो। मनसे बचनसे कायसे अब रूढ़ियोंको छोड़ दो, फैला हुआ है जाल चारों ओर उसको तोड़ दो। हे बन्धुओं जो पूर्वज थे आज तुम भी हो वही, ऐसा करो सत्कार्य जिससे शीघ्र अपनाये महो। आलस्य या मद मोहमें कबतक रहोगे तुम पड़े,
अघ तो हमारी उन्नतीके अङ्ग सारे ही सड़े। संसारमें सन्मार्ग ही अत्यन्त दुर्गम है सदा, उस मार्गमें चलते हुये आती अनेकों आपदा।
१२