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श्रेयांसि बहु विघ्नानि यह पूर्वजों की नीति है, केवल अचल विश्वाससे मिलती सदाही जीत है।
जबतक मनुज जनभीतिसे आगे कभी आता नहीं, तबतक न अपने रूपको कोई कहीं पाता नहीं। आदित्य यदि तमभीतिसे संसारमें प्रगटित नहो, तो एक क्षणभरके लिये भी सान्द्रतम२ विघटितनहो
वे वीरवर सानन्द सष उपसर्ग यदि सहते नहीं,
तो आजतक उनके यहांपर नाम भी रहते नहीं । सुख दुःखतो सबकेजगतमें अभूसमचंचल अहा, इनकी न चिन्ता है जिसे वह ही कहाता है महा।
स्वाधीनता। चारों तरफअभिन्यास हो फिरसे सुखद स्वाधीनता, छिपती फिरे अब जंगलोंमें हीनता, दुर्दीनता । परतंत्र रहकर दूध रोटी भी किसीको इष्ट क्या ? परतंत्रतामें शूरवीरों को नहीं है कष्ट क्या ? १सूर्य । २ सयन।