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मनोकामना। फिरसे प्रभो! यह धर्म तक मध्याह्नका मार्तडर हो. तेरी दयासे लोकका दुख दूर सव पाखंड हो । अज्ञान-तमके गर्तमें जो शीघ्र उचासीन हो, दुष्कर्मले सब हीन हो सत्कर्ममें मनलीन हों।
अवलोक करके अड़चनें साहस कभी हारें नहीं.
उपकार करनेमें कभी आलश तनिक धारें नहीं। 'सत्वेषु मैत्री' भत्रका सप्रेम आराधन करें. निश्चिन्त ही निष्काम सब नित धर्मका साधन करें।
पीड़ित जनों पर चित्तसे होवे विपुल सच्ची दया,
अघ कृत्य करनेमें हमें आती सदा ही हो दया ! यो साश्रुहर्पित ही अलौकिक गुरुजनोंमें भक्ति हो, पर कष्ट मोचनके लिये प्रगटित हमारी भक्ति हो।
आये हमारी सम्पदा शुभ कृत्य जगके दानमें. जिहा विकट तल्लीनहोप्रभुके विपुलगुणगानमें। २ सूर्य।