________________
Poot
जो नारियां जितना बड़ा धंघट सदैव निकालती, उतना अधिक प्राणेश प्रति कर्तव्य अपना पालतीं। इस राक्षसी पर्दा-प्रथासे आत्म बल जाता रहा. हममें नहीं जबबल अहो, तोनारियोंमें हो कहां।
चलती हुई वे मार्गमें खाती अनेकों ठोकरें,
समथल न होनेसे कहीं वे हाय, ओंधे मुख गिरें। खसता सरस अंचल कहीं पड़ता अहो, नूपुर कहीं, उन बन्द नयनों से निकटकी वस्तुलख सकतीनहीं।
सोला (शोध) हे पाठको, सुन लीजिये सोला प्रथाको भी कहा,
सुनकर यही कहना पड़ेगा यह प्रथा बिल्कुल वृथा । अति शुद्धताके हेत ही सोला यहां जाता किया, पर शुद्धतापर तो सदाही ध्यान कम जाता दिया। मैलीकुचैली धोतियोंको अन्य यदि छ ले कहीं,
तव तो रसोईके जरा भी कामकी रहती नहीं। भोजन-भवनकी धोतियोंमें मैल रहता है छवा, सोला बिना पर छुन सकती वे रसोईका तवा।