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सुकुमारता ।
देखो अकेली वे कभी गृहसे निकल सकती नहीं. मोटर तथा तांगे बिना दो पांव चल सकती नहीं, । उनके भवनके काम सारे दास या दासी करें, वे काम कर सकतीं नहीं पतिदेव तक पानी भरें।
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द्विजराज सेवक हैं भवन- भोजन बनानेके लिये, दो चार सुन्दर दासियाँ हैं तन सजानेके लिये । पनिदेव सेवाके लिये उनके न कोमल हाथ हैं, श्रीमान् सतियों के यहां बस दास सम ही नाथ हैं।
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है कौन ऐसा काम जो इनको नहीं निज-कामिनी आदेश पानेके लिये उनके सुपुत्रों को यहापर धायगण ही ये फैशनोंमें लीन हैं सुतपर न दृष्टी
पुत्राभिलाषा ।
करना पड़े, रहते खड़े ।
पालतीं,
डालतीं ।
पुत्राभिलापासे यहांकी नारियां करती न क्या ? सादर कुदेवों के चरणमें शीश निज धरतीं न क्या । विज्ञापनों की कौनसी शुभ औषधी इनसे बचे, सुतहेत जगका नित्य अनि दुष्कृत्य भी इनको रुचे