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उनके हृदयमें आजकल अतिशय अविद्या राज्य है,
पीहर सुखों के सामने प्राणेश भी हा! त्याज्य है। वे पत्र पतिका पढ़ सकं इतना नहीं उनने पढ़ा, माता-पिताओंपर यहां अज्ञान भूत अहा! चढ़ा।
इन बालिकाओं को पढ़ाकर क्या कराना नौकरी, विद्या पड़े विन पालिका जाती नहीं भूखों मरी। यह तो पराई वस्तु है इससे हमें क्या काम है, थोड़े दिनों के ही लिये इसका यहां यह धाम है।
२८७ करके सुताका व्याह हम निश्चिन्त नित होते अहा!
पर बालिकाके नामपर परिजन सभी रोते अहा ! गृह कार्य करना भी उन्हें अच्छी तरह आता नहीं, हृदयेश भी पाकर उन्हें आरामको पाता नहीं ।
२८८ निज गुरुजनों की तो विनय उनके हृदयसे दूर है,
यस! मूर्खता, अज्ञानता, अविवेकता भरपूर है। निज सासको देना विकट उत्तर नहीं वे भूलती, वे जान करके ही हृदयमें वाक्य-भाला हूलतीं।