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मानों प्रभूको भी अभी संसार दुःख अवशेष है, उनकी अवस्थापर विचारों को बड़ा ही क्लेश है ।
२७० श्रीमान् लोगों ने सदनसे द्रव्य कुछ भिजवा दिया, धोके पुजारीने उसे सर्वेश-पूजन कर लिया । बैठे हुए अपने भवनमें पुण्य उनको मिल गया, जगकर्म सबशुभरूप होक्योंकि वहां श्रीकीदया।
देव मन्दिरोंका हिसाव । देवालयोंके द्रव्यकी भी अव्यवस्था हो रही, जिसके निकट यह द्रव्य है यस पास उसहीके रही। जो बाप दादोंको दिया था द्रव्य उनके साथ है, क्यों दानका दें द्रव्य यों अब तो हमारा हाथ है।
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विश्वाससे जिसके यहाँ रुपया जमा जाते किये,
प्रस्तुत पुनः होते नहीं वे शीघ्र देनेके लिये। देवालयोंका द्रव्य तो जगमें सदा भगवानका, दाता सभीका है वही,वावें न क्यों धनवानका ।
लक्ष्मी!
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