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मार्जार-द्वयका देख लो क्या न्याय बन्दरने किया, आहार उनका दक्षतासे शीघ्र उसने हर लिया।
लड़ते जहां घर दो मनुज होता वहां परका भला,
जयचन्द्रके ही द्वषसे तो राज्य यवनों को मिला। सप्रीति हम तो धर्म साधन तक नहीं अब जानते, भूले अहिंसा तत्वको उसको न कुछ पहिचानते।
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जिसकाल सारे विश्वमें बढ़ती दिखाती एकता,
उस काल हममें बढ़ रही है मूर्खता, अविवेकता। सबही दिगम्बर और श्वेताम्बर प्रभूके पुत्र हैं, क्यों बन रहे हैं आज वे ही तीर्थ कारण शत्रु हैं ?
ये तीर्थ जगमें हैं सभीको तारनेके ही लिये,
संग्राम क्षेत्र बना रहे नर मारनेके ही लिये। हाहा! निहत्थोंपर कठिन पड़ती पुलिसकी मार है, इस पामरोचित कार्यको जग दे रहा धिक्कार है।
__मन्दिरोंका पूजन। यों हो रहा है दूर हमसे आज पूजा-पाठ सब, हा! बढ़ रहा देखो विलासों का नयाहीगाठ अव ।