________________
लोकोक्ति गुड़ गीला यथा वनिया रहे ढीला तथा, निज कार्यसे इस बातको हम कर रहे हैं सर्वथा । केवल तराजूमें हमारी आज सारी शक्ति है, उत्थानकी चिन्ता नहीं है सम्पदामें भक्ति है ।
होती नहीं अपनी वसूली भी पठानोंके बिना, षंढत्व वह वाकी रहा जिसकी न भी थी कल्पना । अब नामके ही हैं पुरुष हममें न कुछ पुरुषत्व है, संसारमें मनुजत्व विन निष्काम ही अस्तित्व है,
तीर्थों के झगड़े। भगवान सम ही पूजते हैं भक्त तीर्थ स्थानको, पाया वहाँसे ईशने अनुपम सुखद निर्वाणको । उन तीर्थ क्षेत्रों में सदासुख शान्ति मिलती है बड़ी जाती विखर पल मात्रमें सम्पूर्ण पापोंकी लड़ी।
अब तीर्थ क्षेत्रों के लिये बढ़ता सदा ही बैर है,
करना पड़े उनके लिये अव कौंसिलों की सैर है । यह जाति हा,हा, विश्वमें शुभ शक्तियों से भ्रष्ट है, जो शक्ति कुछ अवशेष है उसका मिटाना इष्ट है।