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GODROOF
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२१९ सिर केश-लुंचनके लिये जाता यहां मेला भरा,
विज्ञापनों से व्याप्त होती है सकल विश्वम्भरा । छयालीस दोषोंको कहो कब पूर्णतः वे टालते, दोचार बातें छोड़,क्या शास्त्रोक्त विधि वे पालते।
२२० पूजा तथा अभिमानमें उनका हृदय आसक्त हैं, तप,ज्ञान,संयमसे तरल१ मन सर्वदा ही रिक्त है। आ मानमें धारण करें ये श्रेष्ठ संयमकी धुरा, पर अन्तमें अवलोकिये परिणाम आता है बुरा।
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आधीन नहिं हैं इन्द्रियें सब इन्द्रियोंके दास हैं,
हा! व्यर्थ ही निज देहको यों दे रहे अति त्रास हैं। मार्जार सम लजा जनक संसारमें इनकी कथा, शीतोष्णकी किंचित् कभी भी सह नहीं सकते व्यथा
२२२ जग चित्त-रंजनसे इन्हें गुरुता हुई अव प्राप्त है, संसार-चिन्तासे हृदय विस्मय! अधिकतर व्याप्त है। १ चंचल।