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उनकी दशाको देखकर होता हृदय क्यों म्लान है । वे साधु हैं लेकिन हृदयमें साधुता थोड़ी नहीं, तन वस्त्र-त्यागा किन्तु ममताकी लता तोड़ी नहीं ।
२१६ अब भी अहो! उनके हृदय ऐहिक-विषयकी चाह है, निर्वाण सुखसिद्धयर्थ क्यालवलेश भी उत्साह है वे मान या अपमानका रखते बड़ा ही ध्यान हैं, मद,मोह,ममता, पक्षता, उनके प्रवल महमान हैं।
यहमार्ग यद्यपिहै सुगमती भी कठिन इसकी क्रिया, पर आज तो यस मानमें मुनिव्रत यहां जाता लिया वे मूल गुण भी पालनेमें सर्वथा असमर्थ हैं, असमर्थता वश साधु गण करते अनेक अनर्थ हैं।
२१८ हो दूर वे निज गेहसे फंसते जगतके जालमें,
सौभाग्यसे मिलते कहीं सच्चे गुरू कलिकालमें। तनपर कभी रखते नहीं निल तुप परापर चेल१को, पर कौन कह मकतामनुज उनके हृदयमलको।