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इन चार बातोंपर सदा इनका अधिक अधिकार है, आचार है, व्यवहार है, व्यापार है, आहार है । मनके विचारों पर अहो ! सत्ता जमाना चाहते, अपने पुराने रङ्गकी सरिता बहाना चाहते ।
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शुभ न्यायके ही हेत पंचोंकी यहाँ सृष्टि हुई, परिणाम है विपरीत अब अन्यायकी वृष्टि हुई । ये मानवोचित कार्य में भी पाप बतलाते हमें, हां ! रातमें भी सूर्यका सन्ताप घतलाते हमें ।
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करते हुये भी पाप इनके साथमें चलते रहो, हँसते रहो, मिलते रहो, नित हाथ पग मलते रहो । यदि चापलूसीमें जरा भी जायंगी रह गलतियां, उड़ जायंगी तत्काल ही फिर तो तुम्हारी धज्जियां । पञ्चायतें ।
कोई दिवस पंचायतों का विश्व बीच महत्व था, तब मानवों में भी परस्पर एक दिन एकत्व था । वे न करतीं थीं कभी भी खून विश्रुत सत्यका, पथ पुष्ट वे करतीं न थीं अन्याय और असत्यका ।
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