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ये लोग लेते लोभवश श्रीमान्से अति द्रव्यको, पर कब निभाते हैं वहाँ सम्पूर्णतः कर्तव्यको।
वे खर्चसे भी तो अधिकलें खर्च अपने सेठसे,
घर बांध ले जाते मिगई मुफ्तमें ही पेटसे। सद्धर्म-मूर्ति मानवोंका एक यह व्यवसाय है, होती ने पाई पासको व्यय और खासी आय है।
पञ्च ।
यों न्याय करनेके लिये बनते सभी ही पञ्च हैं, उपकार करुणा आदिके नहिं भाव उनमें रंच हैं। वस, रूढ़ियोंको पुष्ट करना आज उनका लक्ष्य है, है मूर्खतासे ही भरा देखो यहां अध्यक्ष है।
१२६ नर आयुमें जितना बड़ा वह पंच है उतना घड़ा,
उनका यहां सब ठौर ही अज्ञानसे पाला पड़ा। रहते हजारों कोश वे तो दूर सुन्दर-नीतिसे, देते नहीं हैं दण्ड वे सम्बन्धियोंको प्रीनिसे।