________________
१०७
थोड़ा परिश्रम भी पिता उनसे कराते हैं नहीं, रखते उन्हें वे लाइसे किंचित् डराते हैं नहीं। अपराध सारे बालकों के शीघ्र हँसकर टालते, श्रीमान् अपने पुत्र प्रति कर्तव्यको कब पालते ?
१०८ फिरते सदा स्वच्छन्द वे सर्वत्र सुखसे धमते, निःशंक देखो रण्डियों के मुख-कमलको चमते । अवलोकके सुतकी दशामाता दुखी हा! होचली, "ऐसी बुरी सन्तानसे थी मैं सदापन्ध्या भली।"
१०६ पाती सदन सम्बाद माता पुत्रके दुःखसे भरे,
हा! सोचसे उसके अचानक उष्ण दो आंसू गिरे। जब वक्र तरुवर होगयातव सोचसे भी कामक्या, होताअशिक्षाका नहीं भीषणदुखद परिणामक्या?
दिखते उन्हें स्कूल बोर्डिङ्ग तीव्र कारागारसे,
होते दुखी अतिशय कुंवर वे पुस्तकों के मारसे। निश्चिन्त हो दो चार घण्टे पैठ वे सकते नहीं, लेटे विना दिनमें उन्हें आराम मिल सकता नहीं।