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ज्यों वे बड़े होने लगे त्यों शौक भी बढ़ने लगे,
संध्या समय भ्रमणार्थ मोटर नित्य ही चढ़ने लगे। जाने लगे दश पांच अनुपम मित्र भी तो साथमें, आनन्द आता है सदा दश पाँचके ही साथमें.!
मन मोहते उनका अधिक बस रंडियोंके गीत ही,
इज्जत न जिनकी है कहीं दो चार ऐसे मीत ही। रखते सदा ही पासमें निज द्रव्य देकर पालते, विपरीत इनके ही सदा दुष्काम जो कर डालते ।
अध्यात्म विमासे इन्हें कुछ पूर्व भवका रैर है, बस , वाहनोंसे भूलकर नीचे न पड़ता पैर है । फैशन बढ़ायेंगे सदा वे साहबोंसे भी बड़ी, तकदीरका ही खोर है लाइन न इङ्गलिशकी पड़ी।
गाली बिना वे शब्द भी मुखसे निकालेंगे नहीं, '
दो चार रुपये व्यर्थ भी उनको न सालेंगे कहीं। निज साथियोंको पेटभर मोदक सदैव खिलायेंगे, , सरकस तथा नाटक उन्हें सप्रेम वे दिखलायेंगे।