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करते सभी कुछ शक्तियों का नाश उसके हाथमें, हम सौंप देते हैं सकल सम्पत्ति उसके हाथमें । निज कामिनीके आभरण देते उसे ला हर्षसे, मानों यहांपर आ गई है अप्सरा ही स्वर्गसे।
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खोते पत मुग्ध दीपक पर हुये निज प्राणको, हम रूपपर मोहित हुये खोके सकल सन्मानको । उनकी कटाक्षोंमें सदा देखो विकट जादू भरा, जिसको निहारा प्रेमसे वह तो व्यथित होके मरा।
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शृङ्गार कर अपनी छतोंपर अप्सरासी शोभतीं, संकेत करके जो विविध नित पन्थियों को मोहतीं। है स्वच्छ वस्त्राच्छन मानों एक विष्ठाका घड़ा, वह तो अपावन हो गया जो भी तनिक इससे अड़ा।
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होते प्रमेहादिक यहाँ वाराङ्गना-सहवाससे, नर छोड़ देते प्राण अपने रोगके ही त्राससे । होता न इससे लाभ कुछ अपकीर्ति होती है घनी, रहता दुखी परिवार सव, माता, पिता प्रियकामिनी ।