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अध्याय
जैन धर्म का विस्तार
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ग
[जैन-धर्म के प्राश्रय में आने वाले राज-वश तथा राज्य]
भारत के भिन्न भिन्न प्रदेशो मे कुछ ऐसे राज-वश उभरे जिनमे कुछ ऐसे अहिंसा-प्रेमी जिन-भक्त राजा हुए जिन्होने अहिंसा धर्म को प्रतिष्ठित करने में कोर-कसर न छोडी। उन्होने अपनी जीवन-चाँ में भगवान महावीर के उच्च सिद्धान्तो को स्थान दिया।
कुछेक राजा और सरदार ऐसे भी हुए जो जैन धर्मानुयायी तो नही बने वरन् उसको आदर की दृष्टि से देखा और जैन मुनियो के विचारो की प्रशसा की तथा उनसे प्रभावित होकर उनको अपने राज्य मे अधिक से अधिक सुविधाएँ प्रदान की। कभी कभी इन राजाप्रो के मत्री तथा सेनापति जैन धर्मी होते थे । ये उच्च कर्मचारी राजा को श्री-वृद्धि एव विजय-लक्ष्मी प्राप्त कराने में सदा तत्पर रहते थे और राज्य में सुप्रबन्ध कायम करके राजा के विश्वासपात्र बनते थे। इन वशो का सक्षिप्त विवरण नीचे दिया जाता है:
(i) कलचूरी और कलभ्रवशी राजा
यह मध्यप्रात का सबसे बड़ा राजवश था। ईसवी आठवी-नवमी शताब्दी में इसका प्रबल प्रताप चमक रहा था। इस वश के राजा जैन धर्म के विशेष अनुरागी थे।
प्रोफेसर रामस्वामी प्राय गर का कथन है कि इनके वंशज आज भी जैन 'कलार' के नाम से नागपुर के पास पास मौजूद हैं।