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(ii)
होयसल वंशी राज्य
इस वंश के अनेक राजा मत्री और सेनापति जैन धर्मानुयायी थे । ' सुदत्त' मुनि इस वश के राजगुरु थे । पहले यह चालुक्य के माण्डलिक थे, परन्तु सन् १९१६ में इन्होने स्वतंत्र राज्य स्थापित कर लिया
था ।
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इस वश के सम्बन्ध मे कहा जाता है कि एक मुनिराज ध्यान कर रहे थे । उनके ऊपर एक शेर झपटा, किसी अन्य पुरुष ने देख लिया उसने दूर से ही प्राते हुए किसी वीर पुरुष से कहा, "हे सल ! इसे मारो" उसने शेर को मार दिया और उसी का वश होय्यसल वंश के नाम से विख्यात हुआ जिसमें अनेक प्रतापी राजा महाराजा हुए ।
(iii) गग वग
ईसा की दूसरी शताब्दी में गंग राजाओ ने दक्षिण प्रदेश में अपना राज्य स्थापित किया । ग्यारहवी शताब्दी तक वह विस्तृत भूखण्ड पर शासन करते रहे । यह सब राजा परम जैन थे । 'माधव' इस वश के प्रथम राजा हुए जिन्हे कोणी वर्मा भी कहते है । यह जैनाचार्य ' हिनदि के शिष्य थे । जैनाचार्य सिंहनंदि ने गगराज्य की नीव डालने में बडी सहायता की थी। इस वश के 'अविनीत' नाम के राजा प्रतिपालक जैनाचार्य 'विजय कीर्ति' कहे गये है । सुप्रसिद्ध तत्वार्थ सूत्र की 'सर्वार्थसिद्धि' टीका के कर्ता आचार्य 'पूज्यपाद देवनंदि' इसी वश के सातवे नरेश 'दुर्विनीत' के राजगुरू थे ।
गगनरेश 'मारसिंह' के विषय में कहा गया है कि उन्होंने अनेक भारी युद्धों में विजय प्राप्त करके कई दुर्ग जीतकर एवं अनेक जैन मंदिर व स्तम्भ निर्माण कराकर अत मे अजितसेन' मट्टारक के समीप बकापुर मे पडित विधि से मरण किया ।