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________________ अध्याय मृत्यु कला मनुष्य मात्र ने जीवित रहने, अच्छी तरह से जीवित रहने, सुखसम्मान से जीवित रहने के लिये बड़ी बड़ी विद्याए और कलाए रच डालीं। पुरुषो के लिये ७२ कलाओं का और स्त्रियो के लिए ६४ कलापो का विधान किया गया। मनुष्य दीर्घायु होकर १०० वर्ष तक जिये, इस सम्बन्ध में प्राचीन धर्मग्रन्थो तथा शास्त्रो में विवेचन किया गया है। ____घर में नव-जात शिशु के आगमन पर खुशी के नगाड़े बज उठते है, परन्तु इसके विपरीत, मृत्यु होने पर रोना, पीटना, हाय हाय करना जैसे शब्द सनाई पड़ते है । मृत्यु का समाचार पाकर अपने-पराये सभी शोकातुर हो जाते है। कितना भयावह परिवर्तन है। कितना अंतर है 'जीवन' और 'मृत्यु' में। __क्या वस्तुतः मृत्यु ऐसी भयावह और निकृष्ट है ? कोई भी मरना नहीं चाहता, सभी जीना चाहते हैं। जो व्यक्ति काल का ग्रास हो गया, वह कभी लौट कर नही आता। प्रत्येक वस्तु के दो पहल होते है-उज्ज्वल और अन्धकारमय अथवा आपत्तिग्रस्त। भगवान महावीर ने मृत्यु को बुरा नही कहा। मृत्यु से भयभीत होना अज्ञान का फल है । मृत्यु कोई विकराल दैत्य नही है । मृत्यु मनुष्य का मित्र है । मृत्यु एक मंजिल है किसी लम्बे संकट की। लम्बी साधना के पश्चात् मृत्यु एक विश्राम है और उसके पश्चात् फिर एक नया उल्लासमय जीवन प्रारम्भ होता है । यदि मृत्यु सहा
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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