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श्रखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करना, ध्यान, स्वाध्याय व आत्मस्मरण करना और सर्व प्रकार की सासारिक उपाधियो से छुट्टी पाकर साधु-सरीखी चर्या धारण करना इस व्रत का उद्देश्य है ।
4. अतिथि संविभाग - जिनके आने का समय नियत नही उन्हें अतिथि कहते हैं । साधु बिना सूचना दिये आते है । उन्हे सयमोपयोगी आहार पानी का दान करना अतिथि सविभाग व्रत कहलाता है । संग्रह वृत्ति को कम करने तथा त्याग भावना को विकसित करने के लिये इस व्रत की व्यवस्था की गई है । साधु के अतिरिक्त अन्य दीनदुःखी व्यक्ति भी द्वार से निराश न लौटे ।
उपरोक्त बारह व्रतो ( ५ अणुव्रत, ३ गुणव्रत, ४ शिक्षाव्रत ) का पालन करने से आध्यात्मिक उन्नति, सामाजिक न्याय तथा स्व-पर सुख की प्राप्ति होती है । इससे बन्धुत्व और शांतिमय वातावरण उपजता है और संसार स्वर्गमय बन जाता है । ये व्रत हिसारहित स्वस्थ "समाजवाद" और "साम्यवाद" का दिग्दर्शन कराते हैं ।
महावीर की देन संसार के लिये कितनी उपयोगी और शाँतिदायिक है ।