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तथा शिल्प आदि विद्याये सिखायीं । कृतज्ञतापूर्वक सभी लोगों ने ऋषभ को 'प्रजापति' की उपाधि से विभूषित किया।
ऋषभ ने विवाह' प्रथा का श्रीगणेश किया। उनके अनेक पुत्र पुत्रियाँ हुयी। उनके पुत्रो में 'भरत' और 'बाहुबलि' के नाम उल्लेखनीय है। भरत पहले चक्रवर्ती राजा हुए । बाहुबलि ने ससार त्यांग कर अनुपम तपस्या की जिसे सुन कर रोमांच हो पाता है। अन्त में समस्त कर्मों को समाप्त करके आप मुक्ति को प्राप्त हुए। मैसूर राज्य (कर्णाटक) में श्रवणबेलगोल मे बाहुबली की ५७ फुट ऊंची पाषाण भूति १० वी शताब्दी में चामुण्डराय सेनापति द्वारा निर्मित लाखों पर्यटको की श्रद्धाभक्ति का केन्द्र बनी हुई है और ससार में जैन वास्तुकला का एक आश्चर्यचकित आदर्श उपस्थित करती है।
ऋषभ महाराज की 'ब्राह्मी और सुन्दरी' दो गुणवती कन्याये हुयी। भारत की लिपियो की सिरमौर 'ब्राह्मी लिपि' की आविष्कर्वी यही ऋषभ पुत्री ब्राह्मी ही है। भ० ऋषभदेव ने अपनी बड़ी पुत्री ब्राह्मी को अक्षर विद्या सिखाई जो उसके नाम से ब्राह्मी लिपि प्रसिद्ध हुई । सम्राट अशोक ने उसका नाम अशोक लिपि रखा । गुजरात के नागर ब्राह्मणो ने उसका नाम नागरी रखा । प्रादर सूचक भाव प्रकट करने के लिए देव शब्द का नाम प्रयोग किया गया इसलिए देवनागरी नाम से यह लिपि प्रसिद्ध हुई । इसी लिपि ने भारत की अधिकांश लिपियां जैसे शारदा, कश्मीरी, गुरुमुखी, गुजराती, बगला, उड़ीसा, आसामी, महाजनी और मुण्डा प्रचलित हुयी।
___ ब्राह्मी लिपि का पहला शिलालेख राजस्थान के बडरी गाव से प्राप्त हुआ है जो भ० महावीर स्वामी के निर्वाण के ८४ वें वर्ष में लिखा गया है।