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________________ अध्याय ऋषभ-मानवता के प्रथम शिक्षक पुराणो का कथन है कि चैत्र वदी ६ को महाराज नाभि की गुणवती महारानी मरू देवी के गर्भ से एक अत्यन्त तेजस्वी, पराक्रमी तथा भाग्यशाली बालक का जन्म हुआ। कहते है कि इस होनहार बालक के दाहिने पैर मे वृषभ (बैल) का चिह्न था इसलिए उनका नाम वृषभदेव अथवा ऋषभदेव रखा गया। युग बदल रहा था । लोगो की खाद्य समस्या कल्पवृक्षो से पूरी होती नजर नही आती थी। कल्प वृक्षो की संख्या तेजी से कम हो रही थी। लोगो की घबराहट बढी और बदलती हई परिस्थिति का वे सामना न कर सके । उनकी दृष्टि युगपुरुष ऋषभदेव पर पड़ी। ऋषभदेव ने उपस्थित समस्या का विश्लेषण किया। उन्होंने लोगो को अन्नोत्पादन के लिए 'कृषि' का उपदेश दिया और कहा जिस प्रकार एक अनार को चीरने से सैकड़ो रसयुक्त दाने प्राप्त होते है इसी प्रकार पृथ्वी में हल चला कर और बीज बोकर आप असख्य दाने प्राप्त करके अपनी भोजन समस्या को हल कर सकते हैं।' इस प्रकार ऋषभ 'अहिंसक संस्कृति के प्रथम विधाता हुए जिन्होने शाकाहारी विश्व की रचना की। इसके अतिरिक्त उन्होंने नाना प्रकार के वृक्षो व औषधियो की उपयोगिता का ज्ञान कराया। ___जीविकोपार्जन एवं सामाजिक जीवन गुजारने के लिए ऋषम ने लोगों को 'असि' (अपनी रक्षा हेतु अस्त्र शस्त्र चलाने की विद्या) 'मसि (विद्योपार्जन) कृषि (खेती, पशु, पालन) वाणिज्य, नृत्य, गायन
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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