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यह नग्न पाषाण मूर्ति वर्षा, आँधी, सर्दी, गर्मी का मुकाबला करती हुई सीधी प्रकाश के नीचे खड़ी है । इसका मुख उत्तर को है 15 मील की दूरी से भी यह मूर्ति अपनी छटा को लिये हुए स्पष्ट दिखाई देती है । पर्वत पर बनी 500 सीढ़िया पार करके यात्री इस मूर्ति की रचना, कला और सौष्ठव सौदर्य को देख कर शातमनः हो कर आश्चर्य चकित होते हैं ।
शिलालेख से मालूम होता है कि वीर सेनापति चामुन्डराय ने आचार्य नेमिचन्द की प्रेरणा से इसे निर्मित करवाया । यह राजा राजमल्ल या रच्चमल के मन्त्री भी थे । इस अद्भुत प्रस्तर प्रतिमा की प्रतिष्ठा 984 ई० मे की गई । इसके आसपास की निर्मितिया सन 1161 की है ।