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प्रध्याय
जैन चित्र कला
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(1) उडीसा में भूवनेश्वर (भुवनेश्वर) के निकट प्रथम शताब्दी ई. पू की जैन गुफाओ में चित्रकारी के चिन्ह दृष्टिगोचर होते हैं । सम्राट् खारवेल के (161 ई. पू.) हाथी गुफा के शिलालेख में जैन चित्रकला का वर्णन आता है।
(2) तजोर के निकट सित्तनवासल (सिद्धानांवासः) में सातवी शताब्दी की जैन चित्रकारी के कुछ नमूने देखने को मिलते हैं । मित्तनवासल के जैन गुफा मन्दिर मे इसकी दीवालों पर पल्लव राजाओं की शैली के चित्र है, जो तमिल सस्कृति और साहित्य के महान संरक्षक व प्रसिद्ध कलाकार राजा महेन्द्र वर्मा प्रथम (600-625ई०) के बनवाये हुए है।
यहा अब दीवारो और छत पर सिर्फ दो चार चित्र ही कुछ अच्छी हालत में बचे हैं। इनकी विशेषता यह है कि बहुत थोड़ी, किन्तु स्थिर और दृढ़, रेखाओं में अत्यन्त सुन्दर प्राकृतिया बड़ी होशियारी के साथ बनाई गई है जो सजीव सी जान पड़ती हैं। गुफा में “समवसरण की सुन्दर रचना चित्रित है । सारी गुफा कमलों से अलकृत है । खम्भो पर नर्तकियों के चित्र है । बरामदे की छत के मध्य भाग में पुष्करिणी का चित्र है । जल में पशु पक्षी विहार कर रहे है । चित्र के दाहिनी ओर तीन मनुष्याकृतियाँ आकर्षक और सुन्दर हैं।
गुफा में पर्यक मुद्रा में स्थित पुरुष प्रमाण अत्यन्त सुन्दर पाँच तीर्थकर-मूर्तियाँ हैं। पल्लवकालीन चित्र भारतीय विद्वानो के लिए अध्ययन की वस्तु है।