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जैन गुफाएं यह एकातवासी जैन मुनियो की साधना का प्रावश्यक अग बताया गया है। प्रारम्भ मे शिलाओं से आधारित प्राकृतिक गुफापो का प्रयोग किया जाता रहा । ये ही जैन परम्परा के मान्य अकृत्रिम चैत्यालय कहे जा सकते है।
क्रमशः इन गुफाओ का विशेष सस्कार व विस्तार कृत्रिम साधनो से किया जाने लगा और जहा उसके योग्य शिलाएं मिली उन्हें काट कर "गुफा-विहार तथा 'उपासना स्थान बनाया जाने लगा। इन्हें कृत्रिम गुफाएँ कहते है जिनमें जैन कला खूब पनपी।
बराबर व नागार्जुनी पहाडियो की जैन गुफाएं:ये पहाड़िया गया से 15 मील दूर पटना-गया रेलवे के 'बेला' नामक स्टेशन से 8 मील पूर्व की ओर है। 'बराबर' पहाड़ी मे चार तथा नागार्जुनी पहाडी में तीन गुफाए है । ये अशोक महान् मौर उसके पुत्र दशरथ द्वारा प्राजीवक सम्प्रदाय के साधुनो को दी गई थीं। यह सम्प्रदाय उस समय से 200 वर्ष पश्चात् जैन धर्म में विलीन हो गया क्योकि आजीवक मुनियों का क्रिया-कलाप जैन मुनियो से अधिकॉश मिलता था।
2 उदयगिरि व खण्डगिरि की गुफाएँ
उड़ीसा में कटक के समीपवर्ती उदयगिरि खण्डगिरि नामक पर्वतों की गुफाएं, इनमे प्राप्त लेखों के आधार पर ई० पू० द्वितीय शताब्दी की सिद्ध होती है। ____ उदयगिरि की हाथी गुफा नामक गुफा मे प्राकृत भाषा का एक सुविस्तृत लेख पाया गया है जिसमें कलिंग सम्राट् खारवेल के बाल्य काल व राज्य के 13 वर्षों का चरित्र विधिवत् वर्णन है । यह लेख