________________
१२७
अरिहंतों व सिद्धों को नमस्कार के साथ प्रारम्भ हुआ है और उसकी 12वी पक्ति में स्पष्ट उल्लेख है कि उन्होंने अपने राज्य के 12 वें वर्ष मे मगध पर आक्रमण करके वहां के शुगवशीय राजा बृहस्पतिमित्र को पराजित किया और वहा से कलिंग जिन की विख्यात मति वापिस अपने देश में लाया जिसे बहुत पहले नंदराजा अपहरण करके ले गया था। यह गुफा जैन-विहार रूप मे रही है। इसका नाम 'रानी गुफा' भी है।
उदयगिरि व खन्डगिरि मे कुल मिला कर 19 गुफाए है।
नीलगिरि नामक पहाडी में तीन गुफाएं और देखने मे आती हैं। विद्वानो का मत है कि इन गुफाप्रो मे चित्रण कला ‘भरहुत' व साची के स्तूपो से अधिक सुन्दर है।
खण्डगिरि की 'नवमुनि' नामक गुफा में दसवी शती ई० का एक शिलालेख है जिसमे 'जैन मुनि शुभचद्र' का नाम पाया,है । इससे प्रतीत होता है कि यह स्थान ई० पू० द्वितीय शती से लेकर दसवी शती ई. तक जैन धर्म का एक सुदृढ केन्द्र रहा था।
3 राजगिरि की सोन मन्डार गुफा
प्रथम या द्वितीय शताब्दी ई. का ब्राह्मी लिपि का एक लेख इस में मिलता है जिसके अनुसार प्राचार्यरत्न 'वरदेव मनि' ने यहाँ जैन मुनियो के निवास के लिए दो गुफाएँ निर्माण कराई । एक जैन मूर्ति तथा चतुर्मुखी जैन प्रति मायुक्त एक स्तम्भ वहा अब भी विद्यमान है।
4 प्रयाग तथा कौसम (कौशाम्बी) की दो गुफाए
इन मे दूसरी शति ई०पू० का शुङगकालीन लिपि मे एक लेख है। इस लेख में कहागया है कि इन गुफामो को अहिच्छत्रा के "आषाढ़सेन" ने काश्यपीय "महन्तो' के लिये दान किया। भगवान् महावीर काश्यपगोत्रीय थे। सम्भव है उनके मुनि "काश्यीय महत्" कहलाये हो।