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१.७
बनो की सभी सम्प्रदायें मान्यता देती है। इसे जैनो की 'बाइबिल' कहते हैं। छोटे मोटे लगभग 356 सूत्रों द्वारा, दश अध्यायो में, जैन धर्म के मूलभूत सात तत्त्वो का विधिवत निरूपण ग्रन्थ में मा गया है, जिससे इस ग्रन्थ को समस्त जैन सिद्धांत की कु जी कहा जा सकता है। इसी कारण लाक-प्रियता और सुविस्तृत प्रचार की दृष्टि से यह ग्रन्थ जैन साहित्य में अद्वितीय है। इसकी मुख्य टीकाएँ इस प्रकार
1. सर्वार्थ सिद्धि
देवनदिपूज्पाद कृत 2. तत्वार्थ राजवातिक
मकलक कृत 3 तत्वार्थ श्लोकवार्तिक
विद्यानदि , 4. तत्वार्थ भाष्य वृत्ति
स्वोपज्ञ 5. तत्वार्थ माष्य वत्ति
सिद्धसेन गणी , __, " " - हरिभद्र , 7. तत्वार्थाधिगम भाष्य पर व्याख्या - मलयगिरि कृत 8. तत्वार्थ-टिप्पण - चिरंतन मुनि कृत 9 तत्वार्थ पर टबा टिप्पणी (गुजराती)-गणी यशोविजय कृत 10. तत्वाथं वृत्ति - श्रुतसागर सूरि कृत 11. सुखबोध टीका (सस्कृत) मास्कर नदि कृत 12. साधारण संस्कृत व्याख्या -1. विबुधसेन, 2. योगदेव
___ 3. योगीन्द्र देव 4. लक्ष्मीदेव
5. अभयनदि सूरि कृत 13. (कर्णाटक) भाषा में अनेक टीकाएं रची गई
(हिन्दी) भाषा मे -" 14. (अग्रेजी) भाषा में - जे० एल० जनी कृत 15. (जर्मन) भाषा में - डा. हर्मन जेकोबी कृत