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1. समयसार 2. प्रवचनसार 3. पश्चास्तिकाय 4. नियमसार 5. रयणसार 6. देश-भक्ति 7. अष्ट पाहुड 8. बारसं अणु
वेक्खा । 'अमृतचद सूरि' व 'जयसेन' ने उपयुक्त मे से कतिपय पर टीकाएं लिखी है। 'बालचद्रदेव' ने 12वी-13वी शताब्दी मे उन पर 'कन्नड' भाषा में टीकाएं लिखी। __ प्राचार्य कुदकुद ने तमिल भाषा में 'कुरल या कुरुल' नामक एक महाकाव्य रचा और 'थिरुवल्लुवर' नामक अपने शिष्य के हाथ विद्वत समाज में पेश करने के लिये भेज दिया। विद्वत्मण्डल ने उसे खूब पसद किया। 'कुरल' तमिल साहित्य का 'ग्रथ रत्न,' बन गया, 'कुम्ल' नीति का एक अपूर्व ग्रन्थ है और तमिल देशमे वह 'पाचवाँ वेद' विख्यात है। इसकी रचना ऐसी उदार दृष्टि से की गई है कि प्रत्येक धर्म का अनुयायी उसे अपना मान्य ग्रन्थ स्वीकार करने मे गर्व महसूस करता है। (2) बट्टकेर:____वट्टकेर प्रथम शताब्दी ई० पू० रहे। इनके द्वारा लिखित 'मूलाचार' जैन मुनियों के प्राचार के सम्बन्ध में एक प्रामाणिक ग्रन्थ है। यह दिगम्बरो का प्राचाराग शास्त्र है । (3) प्राचार्य कुमार या कात्तिकेय:__'कात्ति केयानुप्रेक्षा' इन प्राचार्य द्वारा रचित प्राकृत भाषा में एक उत्तम ग्रन्थ है। इसमें बारह अध्याय है जो मुनि तथा श्रातक के लिये मोक्ष प्राप्ति के सुन्दर निबन्ध हैं ।
उमास्वाति या उमास्वामी:(3) गृद्धपिच्छाचार्य उमास्वाति या उमास्वामि 'तत्त्वार्थाधिगम (तत्वार्थ) सूत्र के कर्ता थे। यह सस्कृत में प्रथम जैन ग्रन्थ है जिसे