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'शीलांकसूरि', 'शांति चंद्र', 'अभयदेव सूरि', मलधारी हेमचंद्र', 'मलयगिरि', 'द्रोणाचार्य', 'क्षेमकीति' अनेक वृत्तियों के कर्त्ता थे । श्रभयदेव सूरि ने दो आगमों को छोड़ शेष सब पर अत्यंत उपयोगी वृत्तियाँ लिखी । शोलाक सूरी ने शेष दो आगमों- आचारांग व सूत्रकृतांग पर टीकाएँ ( वृत्तिया) लिखी ।
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— जैन प्राचार्य -
जैनाचार्यों तथा उनके प्रबुद्ध, अपरिग्रही, सेवाभावी, मुनिवगं ने भारतीय समाज के समक्ष अपनी ऊँची आचार-विचार प्रणाली उपस्थित की तथा भ्रमण करते हुए जन-जन के समीप जाकर उसे बोध दिया । अन्य समय में, विशेषकर चौमासे में वे एक स्थान में स्थित रहकर, एकाग्रचित्त होकर तपस्या करते थे, शास्त्रों का मंथन करते थे और शास्त्रीय आधार पर अपनी अनुभूतियों को लिपिबद्ध करते थे । उनकी लेखनी ने नाना प्रकार के साहित्य का सृजन किया । सभ्य समाज के लिए उन्होने ऐसा कोई विषय नहीं छोड़ा जिस पर उन्होंने अपने उच्च विचार व्यक्त न किये हों। ऐसे त्यागी, परोपकारी तथा आत्मार्थी मुनियो का समाज में बड़ा आदर था । उनकी कुछेक कृतियो का वर्णन नीचे दिया जाता है ।
(1) आचार्य कुंदकुंद:
'प्राकृत पाहुडो' की रचना की परम्परा में प्राचार्य कुंदकुंद का नाम सुविख्यात है । जैनो की दिगम्बर सम्प्रदाय में उन्हे जो स्थान प्राप्त है, वह दूसरे किसी ग्रन्थकार को प्राप्त नही हो सका । उनका शुभ नाम एक मंगल पद में भगवान महावीर और गौतम गणधर के पश्चात ही तीसरे स्थान पर आता है ।
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उन्होंने कोई 84 पाहुडो की रचना की, किन्तु वर्तमान मे उनकी निम्न रचनाये प्रसिद्ध है: