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________________ १०८ (4) पादलिप्तसूरी व विमल सूरि : इन्होने प्राकृत में अद्भुत लेखन कार्य किया । पादलिप्तसूरि ने 'तरंगवती' नाम का एक धार्मिक उपन्यास लिखा । इसका उल्लेख जिनभद्र के 'विशेषावश्यक भाष्य' में, दाक्षिरगण्यचिह्न की 'कुवलयमाला' में तथा धनपाल द्वारा लिखित 'तिलकमजरी' में आया है । - S विमलसूरि ने 'पद्मचरित' लिखा जिसमें भगवान राम की वीर गाथा का वर्णन है । इसके 118 आख्यान (chapter ) है । राम का ही नाम 'पद्म' हैं | (5) शिवशर्मा व चंद्र ऋषि: इनके द्वारा क्रमशः 'कर्म प्रकृति' और 'पच सग्रह' कर्मवाद के ऊपर जैन के यह दो उत्तम ग्रन्थ लिखे गये हैं । ईसा की प्रारम्भिक शताब्दियों में इनका निर्माण किया गया । आचार्य मलयगिरि ने इन -दोनों ग्रन्थों पर अपने भाष्य लिखे हैं । (6) सिद्धसेन : सिद्धसेन दिवाकर एक उच्चकोटि के दार्शनिक ( logician ) थे । यह उमास्वाति की तरह सर्वप्रिय थे । आचार्य जिनसेन ने आदर के साथ इनका स्मरण किया है। इनकी सूक्तियों को भगवान ऋषमदेव की सूक्तियो के समकक्ष बताया है। सिद्धसेन को प्रतिवादिरूप हाथियो के समूह के लिये विकल्परूप नखोयुक्त 'सिंह' बताया है । इनका 'सन्मति तर्क' ग्रन्थ प्रति प्रसिद्ध और बहुमान्य है, जो प्राकृत गाथाओं में निबद्ध है । इनके अन्य ग्रंथ हैं - 'न्यायावतार' तथा द्वात्रिं शकाएं जो सस्कृत में है । इनके सभी ग्रन्थ गहन दार्शनिक चर्चाओं से परिपूर्ण हैं ।
SR No.010210
Book TitleJain Bharati
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShadilal Jain
PublisherAdishwar Jain
Publication Year
Total Pages156
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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